
सक्रिय पुस्तकालय के लिए जरूरी है तैयारी
उपरोक्त संदर्भ में कुछ व्यावहारिक बातें जोड़ी जा सकती हैं कि पुस्तकालय में शिक्षक की भूमिका और तैयारी को निष्क्रिय मानकर नहीं चलना चाहिए। इसकी बजाय उनकी भूमिका और तैयारी को भी सक्रिय पुस्तकालय की एक अनिवार्य जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए।
स्तकालय के एक प्रशिक्षण में शिक्षकों ने अपनी भूमिका के संदर्भ में लिखा, “एक शिक्षक का अपने पुस्तकालय में मौजूद किताबों के बारे में जानकारी होना और उन किताबों का नियमित अध्ययन करना जरूरी है। तभी वे बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकेंगे और ऐसे बच्चों की भी मदद कर सकेंगे जो शुरूआती स्तर पर नई किताबों के चुनाव में परेशानी महसूस करते हैं। इसके साथ ही अपने लिए एक लक्ष्य निर्धारित करना भी जरूरी ताकि शिक्षक हर सप्ताह या मासिक तौर पर होने वाली कुल पठन गतिविधियों और बच्चों द्वारा किताबों के लेन-देन की वास्तविक स्थिति के बारे में जानकर उसका विश्लेषण कर सकें और भविष्य में बेहतरी के लिए बिंदुओं को रेखांकित कर सकें।”
भाषा शिक्षण में मददगार हैं पुस्तकालय
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा- 2005 पुस्तकालय को भाषा शिक्षण के लिए मददगार मानती है। इसी संदर्भ में एनसीएफ़-2005 के दस्तावेज़ के अनुसार, “भाषा की कक्षा में पुस्तकालय की किताबें लाई जा सकती हैं। प्रोजेक्ट या परियोजना कार्य के माध्यम से बच्चों को पुस्तकालय से संदर्भ सामग्री का अध्ययन करने के लिए कहा जा सकता है। बच्चों से भाषा कालांश के दौरान पिछले सप्ताह पढ़ी गई किताबों के बारे में लिखने के लिए कहा जा सकता है। बच्चों को पुस्तकालय में पढ़ी गई कहानियों को अपने शब्दों में सुनाने के लिए कहा जा सकता है।”
उपरोक्त संदर्भ में पुस्तकालय के बारे में एक शिक्षक प्रशिक्षक कहते हैं, “बच्चों के लिए मुखर वाचन या रीड अलाउड करना एक बेहद प्रभावशाली गतिविधि है। इसका बच्चों के ऊपर बड़ा सकारात्मक असर पड़ता है। बच्चों को ध्यान से सुनने, सुनकर समझने और सुनी हुई कहानी पर होने वाली चर्चा में जवाब देने का प्रशिक्षण मिलता है। यह बच्चों को मुखर बनाता है। पहली से पाँचवीं कक्षा तक के सभी बच्चों के लिए मुखर वाचक एक बेहद प्रभावशाली व सहजता के साथ होने वाली गतिविधि है।”
साभार- एजुकेशन मिरर
उपरोक्त संदर्भ में पुस्तकालय के बारे में एक शिक्षक प्रशिक्षक कहते हैं, “बच्चों के लिए मुखर वाचन या रीड अलाउड करना एक बेहद प्रभावशाली गतिविधि है। इसका बच्चों के ऊपर बड़ा सकारात्मक असर पड़ता है। बच्चों को ध्यान से सुनने, सुनकर समझने और सुनी हुई कहानी पर होने वाली चर्चा में जवाब देने का प्रशिक्षण मिलता है। यह बच्चों को मुखर बनाता है। पहली से पाँचवीं कक्षा तक के सभी बच्चों के लिए मुखर वाचक एक बेहद प्रभावशाली व सहजता के साथ होने वाली गतिविधि है।”
साभार- एजुकेशन मिरर