छठ की सैर
कल मैं पापा के साथ दोपहर में नदी पर गया था। मिट्टी की सीढ़ी थी। पापा उसी पर से नीचे उतरे रहे थे। पापा जल्दी-जल्दी चल रहे थे और मैं धीरे चल रहा था क्योंकि मुझे डर लग रहा था।
पापा मुझे खींच रहे थे। फिर हम लोग धीरे-धीरे नीचे पहुँचे। नीचे मैंने देखा लोग चावल से रंगोली बना रहे थे। कुछ लोग केले और गन्ने का पेड़ लगा रहे थे।
कुछ वेदियाँ ऐसी थीं जो रंगी हीं नहीं थीं फिर हमने कुछ पत्थर देखा। मैं बोला "अगर कोई इस पत्थर को उठा ले तो मैं इस पर 'राम' नाम लिखकर इसको पानी में डाल दूँ। फिर हम घर लौट आए, फिर शाम को मैं छोटे बाबा के साथ मेला घूमने गया।
आरव मिश्र
गोरखनाथ, गोरखपुर