गुरुवार, 16 जुलाई 2020

लोहे का किस्सा

प्यारे दोस्तो! 

उम्मीद है तुम सभी चंगे भले तंदुरुस्त होंगे और लॉकडाउन के नियमों का पालन कर रहे होंगे। कहीं बोर तो नहीं हो रहे? अगर ऐसा कुछ है तो चलो अच्छा इस बार हम शुरुआत एक कहानी से करते हैं। धातुओं पर तो बात होती ही रहेगी। 

कहानी कुछ यूं है कि येरूसलम देश के बादशाह सुलेमान को अपने समय में दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था। उसी ने येरूसलम का भव्य मंदिर भी बनवाया था। जब वो मंदिर पूरा हुआ तो उसने उन सभी कारीगरों को धन्यवाद देने के लिए एक शानदार भोज का आयोजन किया जिन्होंने उस मंदिर को बनाने में अपना श्रम लगाया था।

 तो हुआ यूं कि जब सभी जने उस शानदार दावत का लुत्फ ले रहे थे। अचानक बादशाह सुलेमान की गंभीर और रौबदार आवाज ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। 
'इस मंदिर के निर्माण में किसने सबसे अधिक योगदान दिया है?'
बादशाह का सवाल तो सीधा-सा था मगर सरल बिल्कुल न था। 
आखिर कौन है कि जिसकी मेहनत के बिना ये मंदिर बन पाना लगभग असंभव होता? 

एक बार फिर बादशाह का सवाल हवा में गूंज गया। 
जवाबों और दावों की लड़ी-सी लग गई प्यारे बच्चो। क्या मिस्त्री, क्या बढ़ई, क्या नक्काशी करने वाले और क्या मजदूर, सभी इस जवाब पर अपना दावा ठोक रहे थे। और वो सभी अपनी अपनी जगह सही भी थे।

 मिस्त्रियों और कारीगरों के बिना भवन कैसे बनता और लकड़ी के काम बढ़ई के बिना कैसे होते। नक्काशी करने वाले कारीगरों के बिना मंदिर भव्य कैसे दिखता और मज़दूर! मज़दूर अगर मंदिर की नींव ही न खोदते और मेहनत से काम न करते तो भी मंदिर कैसे पूरा होता? 

मगर बादशाह सुलेमान को ऐसे ही बुद्धिमान नहीं समझा जाता था। उसने एक एक करके सभी से पूछना शुरू किया। शुरुआत उसने मिस्त्री दल के मुखिया से ही की।
'तुम्हारे औज़ार किसने बनाए?'
'लोहार ने बादशाह सलामत।'
'और तुम्हारे औज़ार जिनसे तुमने नक्काशी की?'
'लोहार ने हुज़ूर!' नक्काशी करने वाले कारीगरों ने जवाब दिया। 
'और तुम्हारे तसले कुदाल फावड़े किसने बना कर दिए?'
'लोहार ने बादशाह सलामत!' मजदूरों का भी जवाब वही था। 

'तो जान लो आप सभी! इस मंदिर का असली निर्माता कोई और नहीं बल्कि लोहार है। लोहा कूटने वाला।' बादशाह सुलेमान का फैसला सभी ने दिल से कुबूल किया। 

बेशक ये एक दंतकथा एक कहानी हो सकती है दोस्तो! मगर है ये सच के बेहद करीब। 
शायद इसीलिए धातु या मेटल का नाम सुनते ही हम सभी के ज़हन में जो एक सबसे पहला नाम कौंधता है वो “लोहा” ही तो है। एक बहुतायत में पाई जाने वाली धातु और शायद सबसे अधिक उपयोग में भी लाई जाने वाली धातु, लोहा ही तो है। और सच कहें तो बात केवल रोज़मर्रा के औजारों मशीनों और उपयोगिता की ही नहीं है। 

बात तो दरअसल इस से भी कुछ अधिक ही है। 
और वो क्या है? 
तीन ग्राम लोहा! 
अब भला इसका क्या मतलब हुआ? 
तो दोस्तो! मानव शरीर में कुल लोहे की मात्रा लगभग इतनी-सी ही है। बस एक चुटकी जितनी। मगर यकीन मानो अगर किसी तरीके से ये सारा लोहा मानव शरीर से निकाल दिया जाए तो उसका जीवित रहना लगभग असंभव होगा। 

सच में। मगर क्यों? 
ये अगली बार। हाँ, तुम अगर इस से पहले खुद ही खोज पाओ तो यकीनन दुग्गल अंकल को बेहद खुशी होगी। 
तो अगली कड़ी में हम इसी धातु के बारे में और बातें करेंगे। तब तक के लिए तो हमारी ओर से तुम सभी को आशीष। 

आप सभी का दोस्त 
मनु दुग्गल।