सोमवार, 15 जून 2020

जल ही जीवन है

जल ही जीवन है

वैष्णवी उपाध्याय
कक्षा-5
प्राथमिक विद्यालय रकशा
मेंहदावल, संतकबीरनगर।

नाटक

छोटी- जल हमारे लिए बहुत उपयोगी है। हम जल का उपयोग पीने में और बहुत से कार्यों में करते हैं। हमें जल बर्बाद नहीं करना चाहिए।

ज्ञानमती- मेरा कोई कसूर नहीं है। साक्षी ज्यादा पानी फेंकती है।

( साक्षी को बुलाया जाता है।)

छोटी- साक्षी हमें पानी बर्बाद नहीं करना चाहिए। पानी हमारे लिए बहुत जरूरी है। अगर पानी ना हो तो हम मर जाएंगे।

साक्षी- हम अपने नल से पानी निकालते हैं। हम फेंके या गंदा करें, तुम्हारा क्या जाता है? हमें सलाह मत दो। तुम अपना काम करो।

ज्ञानमती- मान जाओ साक्षी नहीं तो एक दिन बहुत पछताओगी।

साक्षी- तुम लोग मुझे परेशान मत करो। आज से मैं और ज्यादा पानी फेंकूंगी और तुम लोगों को चिढ़ाऊंगी। अब मैं और ज्यादा पानी गंदा करूंगी

(एक दिन ऐसा होता है कि साक्षी का नल खराब हो जाता है लेकिन गांव में कोई उसको पानी नहीं देता है। उसे बहुत तेज प्यास लगी रहती है। वह इधर -उधर भटक रही होती है तभी उसे गीतांजलि मिलती है।)

साक्षी- गीतांजलि मुझे पानी दे दो बहुत तेज प्यास लगी है।

गीतांजलि- क्या हुआ साक्षी? जब सब लोग पानी बचाने की बातें करते थे तब तो तुम कोई बात नहीं सुनती थी, अब क्या हुआ?
 
साक्षी- अब मुझे पानी की अहमियत पता चल गई है। अब मैं कभी पानी बर्बाद नहीं करूंगी।

गीतांजलि- हाँ, हमें पानी बचाना चाहिए क्योंकि कहा जाता है जल ही जीवन है।

(छोटी, साक्षी, ज्ञानमती और गीतांजलि सभी पानी बचाने की प्रतिज्ञा करते हैं और खुशी-खुशी चले जाते हैं)